जिंदगी "एक ट्रेन"

जाती हुई ट्रेन के उल्टी दिशा में चलना आपको क्या महसूस कराता हैं?
जैसे- जिंदगी जो बीती
वो अच्छे लम्हे जो बीत गए,
वो पीछे जा रहे हैं।
और आप ?
एक खाली शून्य की तरफ,लेकिन आगे बढ़ रहे हैं।
जो कहाँ जा रहा है?
आपको कहाँ ले जाएगा ?
नहीं पता....।
लेकिन आप चल रहे हैं और चलते जा रहे हैं।
वो जाति हुई ट्रेन- आपकी बीती उम्र, बढ़ती हुई धड़कने,बीते लम्हे, कुछ यादें,कुछ लोग और कुछ सपने
सब ले गयी।
और आप शून्य में खुद को खोज रहे हैं एक शतक बनाने के लिए,

जाकिर खान सर का एक शेर है।
मैं शून्य पे सवार हूँ
बेअदब सा मैं खुमार हूँ
अब मुश्किलों से क्या डरूं
मैं खुद कहर हज़ार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ।

ये मैंने पढ़ा कई बार हैं,
लेकिन महसूस कर पायी हू बीते हुए कुछ दिनों में।
जिस राह पर चल रहे हैं
वहाँ मुश्किले होंगी , कुछ कठिनईया भी होंगी
लेकिन वहाँ आपका खुद के साथ होना बहुत ज़रूरी हैं।
डटे रहिये और बढ़ते रहिये,
क्योंकि सुना तो होगा न?

रुक जाने का नाम "जिंदगी" तो बिल्कुल भी नही....।


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